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लेखनी कहानी -27-Jul-2022 एक हसीना थी

हमने तो आज तक यही सुना था कि हर लड़की हसीना ही होती है वह शक्ल सूरत से चाहे "टुनटुन" , शूर्पणखां या कुब्जा ही क्यों न हो । हसीना का एक सौन्दर्य शास्त्र होता है । वह चांद सी खूबसूरत होती है चाहे उसमें कितने ही "दाग" क्यों न हो और वह चांद चाहे "अमावस" का चांद ही क्यों न हो , मगर हर हसीना चांद से भी खूबसूरत ही समझी जाती है । 


ये हर हसीना का जन्म सिद्ध अधिकार है और हर मर्द का नैतिक कर्तव्य भी है कि वह "काली कलूटी" को भी "ब्लैक ब्यूटी" कहकर उसके सौन्दर्य के कसीदे पढे । यह एक तरह से हसीनाओं द्वारा रचित अलिखित संविधान ही है जिसे हर हाल में हर मर्द को मानना ही होता है । हसीना के सौन्दर्य की आलोचना का अधिकार पुरुष के पास नहीं है । अगर गलती से भी कोई पुरुष उसके सौन्दर्य का उपहास उड़ा दे या आलोचना कर दे तो उसका यह अपराध धारा 302 से भी ज्यादा जघन्य माना जाता है । इसकी चर्चा सौन्दर्य लोक के हर कोनों में होने लगती है और उस पुरुष की इस धृष्टता की सजा हसीनाओं के द्वारा उसका सामूहिक बहिष्कार कर दे दी जाती है । उसके बाद फिर कोई हसीना उसकी हमसफ़र होना तो दूर उसकी ओर देखना तक गवारा नहीं करती है । तब उस मर्द को अपने अपराध का भान होता है लेकिन तब तक बहुत देर हो जाती है और वह मर्द आजीवन "कुंवारेपन" के अभिशाप से अभिशप्त होकर जिंदगी भर तड़प तड़प कर मर जाता है । किसी पुरुष के लिए इससे बड़ी सजा और कोई नहीं है त्रैलोक्य में । 

इस धरती पर अगर कहीं स्वर्ग है 
तो वह किसी हसीन बांहों में ही है 
वरना जिंदगी और नर्क में फर्क ही क्या है ? 

ऐसा नहीं है कि सौन्दर्य शास्त्र में केवल मुखड़ा ही आता है ? हसीना की जुल्फों पर अब तक न जाने कितने शास्त्र रच दिए हैं । उसकी जुल्फें घनी, काली, लंबी ही होती हैं जो उसके घुटनों तक आती हैं । हकीकत में ऐसे बाल कितनी लड़कियों के होते हैं ? मगर उपमा तो उनकी ऐसे दी जाती है जैसे कि उसके बाल बाल नहीं होकर काले नाग हों या काली घटाऐं हों । और यदि हसीना अपने बाल खुले रखती है तो उसके बाल हवा में अवश्य ही उड़ेंगे क्योंकि "पवन" को भी तो इन हसीनाओं के बाल "चूमने" को मिल रहे हैं न ? फिर वह क्यों ऐसा हसीन मौका अपने हाथ से जाने देगा ? वह भी जी खोलकर उन हसीन जुल्फों को उड़ाता है जिससे धरती पर भरपूर मात्रा में बरसात हो जाए । 

पता नहीं ये मौसम वैज्ञानिक इन हसीनाओं की जुल्फों को देखकर ही बरसात की भविष्य वाणी करते हैं या "हवा" की जुल्फें उड़ाने की क्षमता का आकलन करके अपना अनुमान व्यक्त करते हैं ?  मगर जब कभी भी अतिवृष्टि होती है तो ये महसूस होता है कि ये हसीनाएं शायद अपनी जुल्फों को बांधना भूल गयी हैं , तभी तो इतनी मूसलाधार बरसात होती रहती है । अब उन हसीनाओं को कोई कैसे याद दिलवाए कि वे अपनी जुल्फें बांधना भूल गई हैं और इस कारण बाढ के हालात बन गये हैं क्योंकि हसीनाएं तो अपनी खूबसूरती में ही डूबी रहती हैं उन्हें जुल्फें खोलने, बांधने का कहां होश रहता है । तब इंद्र देवता सार्वजनिक मुनादी करवाते हैं और त्रैलोक्य में धारा 144 लगाकर ऐलान किया जाता है कि सारे मर्द अपनी अपनी पत्नियों, माशूकाओं,  उप पत्नियों, रखैलों की जुल्फों को कसकर बांध दें जिससे यह मूसलाधार बरसात रुक जाये । तब जाकर वह अतिवृष्टि रुक पाती है ।  कभी कभी तो ये हसीनाएं अपनी जुल्फें खोलना ही भूल जाती हैं और इस कारण धरती पर सूखा पड़ जाता है और अकाल की नौबत आ जाती है । ये जुल्फें भी ना ना जाने क्या क्या कयामत ढा जाती हैं । 

आंखों पर तो पूरी "मधुशाला" ही खुल गई है । बेचारा पति या प्रेमी यदि "पियक्कड़" नहीं है तो इस मधुशाला से मदिरा का होने वाला अनवरत स्त्राव हसीनाओं की नशीली आंखों से छलछला पड़ता है । ऐसे में जब पति उस जाम का आस्वादन नहीं करता है तो फिर कोई पड़ोसी, कुलीग या और कोई उस "मधुशाला" के परिधीय क्षेत्र में आने वाला कोई भी "पियक्कड़" उस नशीले जाम का आनंद उठाता है और पति उस अलौकिक दृश्य को देख देखकर उसी तरह तरसता है जिस तरह "सिलसिला" फिल्म का संजीव कुमार अमिताभ बच्चन को रेखा की आंखों के जाम पीते देखकर तरसता रहता है । तब पति के पास यह गाने के अलावा और कुछ नहीं बचता है "पीवै गोरी का यार बलम तरसै,  रंग बरसै" 

आंखें चाहे काली हों या नीली । पीली हों या सुनहरी , सब अच्छी लगती हैं मगर लाल आंखें किसी को भी पसंद नहीं आती हैं । ऐसा नहीं है कि लाल रंग से कोई ऐलर्जी है ? अरे लाल साड़ी या लाल गरारा तो पूरे शहर में धूम मचा देता है , मर्दों को दीवाना बना देता है । मगर लाल आंखें ? उफ्फ ! जान ले लेती हैं मर्दों की । बेचारे मर्द तो आंखों के इशारे पर ही नाचते रहते हैं । ऐसे मर्द लाल आंखें देखकर तो बेहोश ही हो जाते होंगे ? क्यों सही है ना ? 

आंखों के अतिरिक्त भौंहों , पलकों, अलकों, पुतलियों तक का एक सौन्दर्य शास्त्र होता है । भौंहों की भाव भंगिमा ही न जाने कितने कत्ल कर जाती हैं । बिना तीर तलवार के ही बीच सड़क पर खून हो जाता है और मजे की बात यह है कि ऐसे हसीन कातिल पर कोई मुकदमा भी नहीं चलता है । शायद इसका कारण यह रहा होगा कि जिस अदालत में वह केस चलेगा उस अदालत का जज जब उन हसीन कातिल नेत्रों को देखेगा तो उसका भी कत्ल हो जाने का पूरा पूरा अंदेशा है । अगर ऐसा हो गया तो फिर न्याय कौन करेगा ? और धरती पर कोई मर्द जिंदा बचेगा भी या नहीं ? अगर ऐसा हुआ तो हुस्न की प्रशंसा कौन करेगा ? फिर कैसी हसीना और कौन सी अप्सरा होगी ? 

अधरों की तो बात ही छोड़ दीजिए । ऐसे लाल सुर्ख , कोमल अधरों को देखकर कौन माई का लाल है जो उनका रसास्वादन करने को लालायित न होता हो ? बस, यहीं से मामला खराब होने लगता है । गुलाब से कोमल होंठ,  उनका लाल रंग, उन पर जमी हल्की हल्की ओस सी नमी और वो कयामत ढाने वाली मुस्कान ! इनके लिए तो हर मर्द किसी से भी लड़ने को तैयार हो जायेगा । विश्व के ज्यादातर युद्ध इन्हीं बालों, आंखों और अधरों के कारण ही तो हुए हैं । 

वैसे तो हसीनाओं के हर एक अंग , उप अंगों पर अनंत लेख लिखा जा सकता है पर मैं ठहरा अल्प ज्ञानी व्यक्ति । सौदर्य बोध कुछ जानता नहीं हूं मैं । हास्य व्यंग्य का रचनाकार हूं श्रंगार विधा का नहीं । इसलिए श्रंगार पर कुछ भी लिखना साहित्य में"अतिक्रमण" की श्रेणी में आ जाएगा और फिर कोई मेरे इस अतिक्रमण पर "बुलडोजर" चला देगा । वैसे भी आजकल "बुलडोजर" फुल फॉर्म में है और वह सब कुछ "मटियामेट" करने के लिए निकल पड़ा है । मेरी अभी अपनी लेखनी को कुचलवाने की कोई इच्छा नहीं है । 

हमने तो सुना है कि एक लड़की पैदा होने से लेकर स्वर्ग लोक में अपना स्थान ग्रहण करने तक "हसीना" ही कहलाती है । तो फिर एक हसीना "थी" कब बनती है ? मौत के बाद ही ना ! जीते जी तो एक लड़की हसीना ही बनी रहती है चाहे वह मां, दादी या पड़दादी ही क्यों ना बन जाये । तो अपने विषय का चयन थोड़ा सोच समझ कर किया करो प्रतिलिपि जी, जिससे हम लेखकों को लिखने में कोई कन्फ्यूजन ना हो । वरना अर्थ का अनर्थ होने की संभावना बन सकती है और मुझ जैसे कलम घसीटू को इतना बड़ा लेख लिखना पड़ सकता है । 

सभी हसीनाओं को सादर समर्पित है यह आलेख । सबको नमन । 

श्री हरि 
37.7.22 

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5 Comments

Aniya Rahman

27-Jul-2022 10:33 PM

Nyc

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Seema Priyadarshini sahay

27-Jul-2022 04:54 PM

Nice 👍

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Rahman

27-Jul-2022 04:54 PM

Osm

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